This is second type of Shani Chalisa and Aarti, useful and worth chanting, you can either choose earlier version of Chalisa and Aarti or this one — though it doesn’t matter much it is just a matter of taste.
Shri Shani Chalisa
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल; दीनन के दुःख दूर करि , कीजै नाथ निहाल ॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु , सुनहु विनय महाराज; करहु कृपा हे रवि तनय , राखहु जन की लाज ॥
|| चौपाई ॥
१) जयति जयति शनिदेव दयाला, करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥
२) चारि भुजा, तनु श्याम विराजै, माथे रतन मुकुट छवि छाजै ॥
३) परम विशाल मनोहर भाला, टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥
४) कुण्डल श्रवन चमाचम चमके, हिये माल मुक्तन मणि दमकै ॥
५) कर में गदा त्रिशूल कुठारा, पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥
६) पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन, यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन ॥
७) सौरी, मन्द शनी दश नामा, भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥
८) जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं, रंकहुं राव करैं क्षण माहीं ॥
९) पर्वतहू तृण होइ निहारत, तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
१०) राज मिलत वन रामहिं दीन्हयो, कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
११) वनहुं में मृग कपट दिखाई, मातु जानकी गई चुराई ॥
१२) लषणहिं शक्ति विकल करिडारा, मचिगा दल में हाहाकारा ॥
१३) रावण की गति-मति बौराई, रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥
१४) दियो कीट करि कंचन लंका, बजि बजरंग बीर की डंका ॥
१५) नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा, चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
१६) हार नौलखा लाग्यो चोरी, हाथ पैर डरवायो तोरी ॥
१७) भारी दशा निकृष्ट दिखायो, तेलहिं घर कोल्हू चलवायो ॥
१८) विनय राग दीपक महँ कीन्हयों, तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों ॥
१९) हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी, आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
२०) तैसे नल पर दशा सिरानी, भूंजी-मीन कूद गई पानी ॥
२१) शंकरहिं गह्यो जब जाई, पारवती को सती कराई ॥
२२) तनिक विकलोकत ही करि रीसा, नभ उड़ि गतो गौरिसुत सीसा ॥
२३) पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी, बची द्रोपदी होति उधारी ॥
२४) कौरव के भी गति मति मारयो, युद्ध महाभारत करि डारयो ॥
२५) रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला, लेकर कूदि परयो पाताला ॥
२६) शेष देव-लखि विनती लाई, रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
२७) वाहन प्रभु के सात सुजाना, जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
२८) जम्बुक सिह आदि नख धारी, सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥
२९) गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं, हय ते सुख सम्पत्ति उपजावै ॥
३०) गर्दभ हानि करै बहु काजा, सिह सिद्ध्कर राज समाजा ॥
३१) जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै, मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
३२) जब आवहिं स्वान सवारी, चोरी आदि होय डर भारी ॥
३४) लौह चरण पर जब प्रभु आवैं, धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥
३५) समता ताम्र रजत शुभकारी, स्वर्ण सर्व सर्वसुख मंगल भारी ॥
३६) जो यह शनि चरित्र नित गावै, कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥
३७) अद्भुत नाथ दिखावैं लीला, करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥
३८) पण्डित सुयोग्य बुलवाई, विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥
३९) पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत , दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
४०) कहत राम सुन्दर प्रभु दासा, शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार; करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥
Shri Shani Ji Ki Aarti
१) जय जय शनिदेव महाराज, जन के संकट हरने वाले ॥
२) तुम सूर्यपुत्र बलधारी, भय मानत दुनिया सारी जी ॥
३) साधत हो दुर्लभ काज ॥
४) तुम धर्मराज के भाई, जम क्रूरता पाई जी ॥
५) घन गर्जन करत आवाज॥
६) तुम नील देव विकरारी, भैसा पर करत सवारी जी ॥
७) कर लोह गदा रहें साज ॥
८) तुम भूपति रंग बनाओ, निर्धन सिर छत्र धराओ जी ॥
९) समरथ हो करन मम काज ॥
१०) राजा को राज मिटाओ, जिन भगतों फेर दिवायो जी ॥
११) जग में ह्वै गयी जै जैकार ॥
१२) तुम हो स्वामी, हम चरनन सिर करत नमामि जी ॥
१३) पुरवो जन जन की आस ॥
१४) यह पूजा देव तिहारी, हम करत दिन भाव ते पारी जी ॥
१५) अंगीकृत करो कृपालु जी ॥
१६) प्रभु सुधि दृष्टि निहारौ, क्षमिये अपराध हमारो जी ॥
१७) है हाथ तिहारे ही लाज ॥
१८) हम बहुत विपत्ति घबराए, शरनागति तुमरी आए जी ॥
१९) प्रभु सिद्ध करो सब काज ॥
२०) यह विनय कर जोर के भक्त सुनावें जी ॥
२१) तुम देवन के सिर ताज॥
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