Shani is a deity who gives lots of money to astrologers, ‘coz everyone is afraid of Shani; and when it is not at a good place in one’s horoscope, it may cause troubles. And to pacify it, there are Anusthans, Gem remedy, Daan and other kinds of involvement. And it takes lots of money.
So why not, one should worship Shani everyday, or at least once a week, on Saturday. It is simple, from the side (never meet straight to him) light a diya filled with mustard oil, offer some flowers and chant Shani Chalisa 3, 5, 7, 11, or more times in odd numbers.
One short cut way to worship Shani is just to chant his Aarti. After Aarti one shouldn’t chant Chalisa, ‘coz it is chanted in the end. For Aarti, one can take either mustard oil lit Diya, or Kapoor burning with its flames.
Chalisa - चालीसा:
॥ दोहा ॥
श्री शनिश्चर देवजी, सुनहु श्रवण मम टेर, कोटि विघ्ननाशक प्रभो, करो न मम हित बेर॥
॥ सोरठा ॥
तव स्तुति हे नाथ, जोरि जुगल कर करत हों, करिये मोहि सनाथ, विघ्नहरण हे रवि सुवन॥
॥ चौपाई ॥
१) शनि देव मैं सुमिरौं तोही, विद्या बुद्धि ज्ञान दो मोही ॥
२) तुम्हरो नाम अनेक बखानौं, क्षुद्रबुद्धि मैं जो कुछ जानौं ॥
३) अन्तक, कोण, रौद्रय मगाऊँ, कृष्ण बभ्रु शनि सबहिं सुनाऊँ ॥
४) पिंगल मन्दसौरि सुख दाता, हित अनहित सब जग के ज्ञाता ॥
५) नित जपै जो नाम तुम्हारा, करहु व्याधि दुख से निस्तारा ॥
६) राशि विषमवस असुरन सुरनर, पन्नग शेष साहित विद्याधर॥
७) राजा रंक रहहिं जो नीको, पशु पक्षी वनचर सबही को॥
८) नन किला शिविर सेनाकर, नाश करत सब ग्राम्य नगर भर॥
९) डालत विघ्न सबहि के सुख में, व्याकुल होहिं पड़े सब दुख में॥
१०) नाथ विनय तुमसे यह मेरी, करिये मोपर दया घनेरी॥
११) मम हित विषयम राशि मंहवासा, करिय न नाथ यही मम आसा॥
१२) जो गुड उड द दे वार शनीचर, तिल जब लोह अन्न धन बिस्तर॥
१३) दान दिये से होंय सुखारी, सोइ शनि सुन यह विनय हमारी॥
१४) नाथ दया तुम मोपर कीजै, कोटिक विघ्न क्षणिक महं छीजै॥
१५) वंदत नाथ जुगल कर जोरी, सुनहुं दया कर विनती मोरी॥
१६) कबहुंक तीरथ राज प्रयागा, सरयू तोर सहित अनुरागा॥
१७) कबहुं सरस्वती शुद्ध नार महं, या कहु गिरी खोह कंदर महं॥
१८) ध्यान धरत हैं जो जोगी जनि, ताहि ध्यान महं सूक्ष्म होहि शनि॥
१९) है अगम्य क्या करूं बड़ाई,करत प्रणाम चरण शिर नाई॥
२०) जो विदेश में बार शनीचर, मुड कर आवेगा जिन घर पर॥
२१) रहैं सुखी शनि देव दुहाई, रक्षा रवि सुत रखैं बनाई॥
२२) जो विदेश जावैं शनिवारा, गृह आवैं नहिं सहै दुखाना॥
२३) संकट देय शनीचर ताही, जेते दुखी होई मन माही॥
२४) सोई रवि नन्दन कर जोरी, वन्दन करत मूढ मति थोरी॥
२५) ब्रह्मा जगत बनावन हारा, विष्णु सबहिं नित देत अहारा॥
२६) हैं त्रिशूलधारी त्रिपुरारी, विभू देव मूरति एक वारी॥
२७) इकहोइ धारण करत शनि नित, वंदत सोई शनि को दमनचित॥
२८) जो नर पाठ करै मन चित से, सो नर छूटै व्यथा अमित से॥
२९) हौं सुपुत्र धन सन्तति बाढ़े, कलि काल कर जोड़ें ठाढे ॥
३०) पशु कुटुम्ब बांधन आदि से, भरो भवन रहिहैं नित सबसे॥
३१) नाना भांति भोग सुख सारा, अन्त समय तजकर संसारा॥
३२) पावै मुक्ति अमर पद भाई, जो नित शनि सम ध्यान लगाई॥
३३) पढ़ै प्रातः जो नाम शनि दस, रहै शनीश्चर नित उसके बस॥
३४) पीड़ा शनि की कबहुं न होई, नित उठ ध्यान धरै जो कोई॥
३५) जो यह पाठ करै चालीसा, होय सुख साखी जगदीशा॥
३६) चालिस दिन नित पढ़ै सबेरे, पातक नाशै शनी घनेरे॥
३७) रवि नन्दन की अस प्रभुताई, जगत मोहतम नाशै भाई॥
३८) याको पाठ करै जो कोई, सुख सम्पत्ति की कमी न होई॥
३९) निशिदिन ध्यान धरै मन माही, आधिव्याधि ढिंग आवै नाही॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनीश्चर देव को, कीन्हौं [विमल] तैयार; करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
जो स्तुति दशरथ जी कियो, सम्मुख शनि निहार, सरस सुभाषा में वही, ललिता लिखें सुधार॥
Aarti - आरती:
१) जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी, सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
२) श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी, नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
३) क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी, मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
४) मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी, लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
५) देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी, विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
Comments
Post a Comment