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Shri Parshvanath Chalisa
॥ दोहा ॥
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करुं प्रणाम, उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ॥
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार,अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मन्दिर में धार ॥
॥ चौपाई ॥
१) पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी ॥
२) सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा ॥
३) तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा ॥
४) अश्वसैन के राजदुलारे, वामा की आँखो के तारे ॥
५) काशी जी के स्वामी कहाये, सारी परजा मौज उड़ाये ॥
६) इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुँचे ॥
७) हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जगंल में गई सवारी ॥
८) एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुनाकर ॥
९) तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते ॥
१०) तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया ॥
११) निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे ॥
१२) रहम प्रभू के दिल में आया, तभी मन्त्र नवकार सुनाया ॥
१३) भर कर वो पाताल सिधाये, पद्मावति धरणेन्द्र कहाये ॥
१४) तपसी मर कर देव कहाया, नाम कमठ ग्रन्थों में गाया ॥
१५) एक समय श्रीपारस स्वामी, राज छोड़ कर वन की ठानी ॥
१६) तप करते थे ध्यान लगाये, इकदिन कमठ वहां पर आये ॥
१७) फौरन ; ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना ॥
१८) बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिराई ॥
१९) बहुत अधिक पत्थर बरसाये, स्वामी तन को नहीं हिलाये ॥
२०) पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा मे चित लाए ॥
२१) धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया ॥
२२) पद्मावति ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया ॥
२३) कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया ॥
२४) यही जगह अहिच्छत्र कहाये, पात्र केशरी जहां पर आये ॥
२५) शिष्य पाँच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना ॥
२६) पार्श्वनाथ का दर्शन पाया सबने जैन धरम अपनाया ॥
२७) अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहाँ सुखी थी परजा सगरी ॥
२८) राजा श्री वसुपाल कहाये, वो इक जिन मन्दिर बनवाये ॥
२९) प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया ॥
३०) वह मिस्तरी मांस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता ॥
३१) मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया ॥
३२) मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना ॥
३३) गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है ॥
३४) वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अन्दर ॥
३५) उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी ॥
३६) जो अहिच्छत्र ह्रदय से ध्वावे, सो नर उत्तम पदवी वावे ॥
३७) पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इक दम घटती हो ॥
३८) है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी ॥
३९) रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी नर ॥
४०) चालीसे को 'चन्द्र' बनाये, हाथ जोड़कर शीश नवाये ॥
॥ सोरठा ॥
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन, खेय सुगन्ध अपार, अहिच्छत्र में आय के ॥
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो, जिसके नहिं सन्तान, नाम वंश जग में चले ॥
Shri Parshvanath Ji Ki Aarti
१) तुम से लागी लगन, ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा ॥
२) मेटो मेटो जी संकट हमारा॥
३) निशदिन तुमको जपूँ, पर से नेहा तजूँ ॥
४) जीवन सारा तेरे चरणों में बीत हमारा ॥
५) अश्वसेन के राजदुलारे, वामा देवी के सुत प्राण प्यारे॥
६) सबसे नेह तोड़ा, जग से मुँह को मोड़ा, संयम धारा ॥
७) इंद्र और धरणेन्द्र भी आए, देवी पद्मावती मंगल गाए॥
८) आशा पूरो सदा, दुःख नहीं पावे कदा, सेवक थारा ॥
९) जग के दुःख की तो परवाह नहीं है, स्वर्ग सुख की भी चाह नहीं है॥
१०) मेटो जामन मरण, होवे ऐसा यतन, पारस प्यारा ॥
११) लाखों बार तुम्हें शीश नवाऊँ, जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊँ ॥
१२) पंकज व्याकुल भया दर्शन बिन ये जिया लागे खारा ॥
१३) नहीं दुनिया में कोई हमारा, प्रभु एक सहारा तुम्हारा ॥
१४) तुम से लागी लगन, ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा ॥
१५) मेटो मेटो जी संकट हमारा॥
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