असोज लगते ही पूर्णमासी से श्राद्ध आरम्भ हो जाते हैं तथा यह अमावस्या तक रहते हैं। It is also called Pitra Paksha or Shradh Paksha. इन दिनों पितरों का तर्पण किया जाता है, पितरों के नाम का भोजन करवाया जाता है, उनके नाम की प्याऊ वगैरहा लगवाई जाती हैं तथा दान दक्षिणा भी की जाती है।
पितरों के नाम का मांत्रिक अनुष्ठान करना भी अच्छा होता है, मंत्रो की ऊर्जा (syn: energy) उन्हें मिलते है तथा उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
अगर किसी स्त्री का श्राद्ध हो तो स्त्री से सम्बंधित चीजे दान में देनी चाहिए। अगर वयस्क पुरुष का श्राद्ध हो तो उससे सम्बंधित चीजें दान में देनी चाहिए। इसी प्रकार पितरों के उम्र के हिसाब से (जिस उम्र में उन्होंने शरीर छोड़ा था) दान दक्षिणा इत्यादि करनी चाहिए।
रोजाना सूर्य को जल देने के बाद, पितरों को जल देना अति उत्तम होता हैं। अगर पितरों की मुक्ति नहीं होती तो वो परेशान रहते हैं, इससे उनके जीवित सगे सम्बन्धियो को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
पितरों को महत्वपूर्ण त्योहारों जैसे होली तथा दिवाली पर हमेशा पूजना चाहिए, कभी कभी पूर्णमासी को गंगा पर जाकर उनको गंगाजल भी अर्पित करना चाहिए।
जिन लोगो के पितर सन्तुष्ट है अथवा मुक्त है, उनकी पीढ़िया को जीवन में सफलता पाने के लिए ज्यादा मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ता।
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