ai Shree Sakal Buddhi Balraasi…..
Let’s check out, few lines of this powerful strot: Valmiki (at line 6), Kalidas (at line 8), Tulsidas & Surdas (at line 9) — these people’s background weren’t good, but, when the Goddess Saraswati blessed them, they turned into world famous in knowledge and in poetry; their work became timeless.
People who want to raise high in education whether spiritual or materialistic — they worship Goddess Saraswati.
Along with Devi Saraswati, worshipping lord Ganesha will add more advantages, as Ganesha is Vighna Harta (removes obstacles) and sharpens the mind.
॥ दोहा ॥
जनक जननी पदम् दुरज निज मस्तक पर धारि, बंदौ मातु सरस्वती बुद्धि बल दे दातारि ।
पूर्ण जगत में व्याप्त तब, महिमा अमित अनंतु, दुष्टजनों के पाप को मातु तू ही अब हन्तु ॥
॥ चौपाई ॥
१) जय श्री सकल बुद्धि बलरासी, जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ॥
२) जय जय जय वीणाकर धारी, करती सदा सुहंस सवारी ॥
३) रूप चतुर्भुज धारी माता, सकल विश्व अंदर विख्याता ॥
४) जग में पाप बुद्धि जब होती, तबहीं धर्म की फीकी ज्योति ॥
५) तबहिं मातु की निज अवतारा, पाप हीन करती महितारा ॥
६) वाल्मीकि जी थे हत्यारा, तब प्रसाद जानै संसारा ॥
७) रामचरित जो रचे बनाई, आदि कवि पदवी को पाई ॥
८) कालिदास जो भये विख्याता, तेरी दृस्टि से माता ॥
९) तुलसी सूर आदि विद्वाना, भये जो और ज्ञानी नाना ॥
१०) तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा, केवल कृपा आपकी अम्बा ॥
११) करहु कृपा सोई मातु भवानी, दुःखित दीन निज दासहि जानी ॥
१२) पुत्र करई अपराध बहूता, तेहि न धरई चित माता ॥
१३) राखु लाज जननि अब मेरी, विनय करउ भांति बहु तेरी ॥
१४) मैं अनाथ तेरी अवलंबा, कृपा करउ जय जय जगदंबा ॥
१५) मधुकैटभ जो अति बलवाना, बाहु युद्ध विष्णु से ठाना ॥
१६) समर हजार पाँच में घोरा, फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ॥
१७) मातु सहाय कीन्ह तेहि काला, बुद्धि विपरीत भई खलहाला ॥
१८) तेहि ते मृत्यु भई खल केरी, पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ॥
१९) चण्ड मुण्ड जो थे विख्याता, छण महु संहारे उन माता ॥
२०) रक्त बीज से समरथ पापी, सुर मुनि हृदय धरा सब काँपी ॥
२१) काटेउ सिर जिम कदली खम्बा, बार बार बिनवऊँ जगदम्बा ॥
२२) जगप्रसिद्ध जो शुम्भ निशुम्भा, क्षण में बांधे ताहि तूँ अम्बा ॥
२३) भरत मातु बुद्धि फेरेऊ जाई, रामचन्द्र बनवास कराई ॥
२४) एहि विधि रावन वध तू कीन्हा, सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा ॥
२५) को समरथ तव यश गुन गाना, निगम अनादि अनंत बखाना ॥
२६) विष्णु रूद्र जस कहिन मारी, जिनकी हो तुम रक्षाकारी ॥
२७) रक्त दन्तिका और शताक्षी, नाम अपार है दानव भक्षी ॥
२८) दुर्गम काज धरा पर कीन्हा, दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ॥
२९) दुर्ग आदि हरनी तू माता, कृपा करहुँ जब जब सुखदाता ॥
३०) नृप कोपित को मारन चाहे, कानन में घेरे मृग नाहै ॥
३१) सागर मध्य पोत के भंजे, अति तूफान नहिं कोऊ संगे ॥
३२) भूत प्रेत बाधा या दुःख में, हो दरिद्र अथवा संकट में ॥
३३) नाम जपे मंगल सब होई, संशय इसमें करइ न कोई ॥
३४) पुत्रहीन जो आतुर भाई, सबै छाँड़ि पूजें एहि भाई ॥
३५) करै पाठ नित यह चालीसा, होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा ॥
३६) धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै, संकट रहित अवश्य हो जावै ॥
३७) भक्ति मातु की करै हमेशा, निकट न आवै ताहि कलेशा ॥
३८) बंदी पाठ करें सत बारा, बंदी पाश दूर हो सारा ॥
३९) रामसागर बाँधि हेतु भवानी, कीजै कृपा दास निज जानी ॥
॥ दोहा ॥
मातु सूर्य कान्ति तिव, अंधकार मम रूप, डूबन से रक्षा करहु, परूँ न मैं भव कूप ॥
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु, राम सागर अधम को आश्रय तू ही दे दातु ॥
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