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Hanuman Bahuk As Sanjeevani Booti : “Sindhu Taran, Siya Soch Haran” Cures And Heals

 Power of Sanjeevani Shakti comes from chanting Hanuman Bahuk.

Hanumanji is a great Vaidya, a Doctor; he is the God who helps a lot — no matter what kind of problem it is; no matter what your religious background is; once he takes you with him, you are bound to get a good future with health, wealth and honor.

Little bit history before going ahead: Once Tulsidas had incurable pain in his arm, and it wasn’t leaving him — so he prayed to lord Hanuman in the form of Hanuman Bahuk and got healed. When anybody devoted to lord Hanuman has some physical problem, they chant it and gets the healing.

Its composition is truly wonderful, I feel like listening it forever, don’t know from where Tulsidas Ji brought the words into it; it’s so cool, it relaxes the mind too.

I think, wherever “[तुलसी]” comes, there you may use your name; and in place of “[बाँह] at || ६, २०, २१ , २२, २३, २४, २६,२७, and others || ” you may use name of your disease, or particular organ where you have problem — but before changing this, crosscheck with some expert. Or Read this as it is, and pray lord Hanuman to cure your disease as he cured Tulsidas; its book is cheaply available across any Hindu

spiritual book store.

हनुमान बाहुक

छप्पय


सिंधु तरन, सिय सोच हरन, रबि बालबरन तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ॥
गहन दहन निरदहन लंक नि:संक बंक भुव ।
जातुधान बलवान मान मद दवन पवनसुव ॥
कह तुलसीदास सेवत सुलभ, सेवक हित संतत निकट ।
गुनगनत नमत सुमिरत जपत समन सकल संकट बिकट ॥ १ ॥

स्वर्न सैल संकास कोटि रबि तरुन तेज घन ।
उर बिसाल भुजदंड चंड नख बज्र बज्रतन ॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस करकस लँगूर खल दल बल भानन ॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट ।
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ॥ २॥

झूलना


पंचमुख छमुख भृगुमुख्य भट असुर सुर, सर्व सरि समर समरत्थ सुरो ।
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरूदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह जासु बल, बिपुल जल भरित जग जलधि झुरो ।
दुवन दल दमनको कौन तुलसीस है, पवनको पूत राजपूत रुरो ॥ ३ ॥

घनाक्षरी

भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन, अनुमानि सिसकेलि कियो फेरफार सो ।
पाछिले पगनि गम गगन मगन मन, क्रमको न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकचौंधि चित्तनि खभार सो ।
बल कैधौं बीररस धीरज कै साहस कै, [तुलसी] सरीर धरे सबनिको सार सो ॥ ४ ॥

भारतमें पारथके रथकेतु कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल छलबल भो ।
कह्यो द्रोन भीषम समीरसुत महाबीर, बीर रस बारि निधि जाको बल जल भो ॥
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि, फलंग फलाँगहुँतें घाटि नभतल भो ।
नाइ नाइ माथ जोरि जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवनको फल भो ॥ ५॥

गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो ।
द्रोन सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक ज्यों कपिखेल बेल कैसो फल भो ॥
संकटसमाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनिको करतल पल भो ।
साहसी समत्थ [तुलसी]को नाह जाकि [बाँह], लोकपाल पालनको फिर थिर थल भो ॥ ६ ॥

कमठकी पीठि जाके गोड़निकी गाडै मानो, नापके भाजन भरि जलनिधि जल भो ।
जातुधान दावन परावनको दुर्ग भयो, महामीनबास तिमि तोमनिको थल भो ॥
कुंभकर्न रावन पयोदनाद ईंधनको, [तुलसी] प्रताप जाको प्रबल अनल भो ।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ॥ ७ ॥

दूत रामरायको, सपूत पूत पौनको तू, अंजनीको नंदन प्रताप भूरि भानु सो ।
सीय सोच समन दुरित दोष दमन, सरन आये अवन लखन प्रिय प्रान सो ॥
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबेको भयो, प्रकट तिलोक ओक [तुलसी] निधान सो ।
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ॥ ८ ॥

दवन दुवन दल भुवन बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बन्दीछोर को ।
पाप ताप तिमिर तुहिन विघटन पटु, सेवक सरोरुह सुखद भानु भोर को ॥
लोक परलोकतें बिसोक सपने न सोक, [तुलसी] के हिये है भरोसो एक ओरको ।
रामको दुलारो दास बामदेवको निवास, नाम कलि कामतरु केसरी किसोर को ॥ ९ ॥

महाबलसीम महाभीम महाबानइत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीरको ।
कुलिस कठोरतनु जोरपरै रोर रन, करुना कलित मन धारमिक धीरको ॥
दुर्जनको कालसो कराल पाल सज्जनको, सुमिरे हरनहार [तुलसी] की पीरको ।
सीय सुखदायक दुलारो रघुनायकको, सेवक सहायक है साहसी समीरको ॥ १०॥

रचिबेको बिधि जैसे पालिबेको हरि हर, मीच मारिबेको ज्याइबेको सुधापान भो ।
धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबेको, सोखिबे कृसानु, पोषिबेको हिम भानु भो ॥
खल दुख दोषिबेको जनपरितोषिबेको, माँगिबो मलिनताको मोदक सुदान भो ।
आरतकी आरति निवारिबेको तिहूँ पुर, [तुलसी] को साहेब हठीलो हनुमान भो ॥ ११ ॥

सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँकको ।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँकको ॥
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताकै जो अनर्थ सो समर्थ एक आँकको ।
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँकको ॥ १२ ॥

सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी ।
लोक परलोकको बिसोक सो तिलोक ताहि, [तुलसी] तमाइ कहा काहू बीर आनकी ॥
केसरीकिसोर बंदिछोरके नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की ।
बालक ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमानकी ॥ १३॥

करुना निधान बलबुद्धिके निधान मोद, महिमानिधान गुन ज्ञानके निधान हौ ।
बामदेव रूप भूप रामके सनेही नाम, लेत देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ॥
आपने प्रभाव सीतानाथके सुभाव सील, लोक बेद बिधिके बिदुष हनुमान हौ ।
मनकी बचनकी करमकी तिहूँ प्रकार, [तुलसी] तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ॥ १४॥

मनको अगम तन सुगम किये कपीस, काज महाराजके समाज साज साजे हैं ।
देव बंदिछोर रनरोर केसरीकिसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं ॥
बीर बरजोर घटि जोर तुलसीकी ओर, सुनि सकुचाने साधु खलगन गाजे हैं ।
बिगरी सँवार अंजनीकुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमानके निवाजे हैं ॥ १५॥

सवैया

जानसिरोमनि हौ हनुमान सदा जनके मन बास तिहारो ।
ढारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ॥
साहेब सेवक नाते ते हातो कियो सो तहाँ [तुलसी]को न चारो ।
दोष सुनाये तें आगेहुँको होशियार ह्वै हों मन तौ हिय हारो ॥ १६॥

तेरे थपे उथपै न महेस थपै थिरको कपि जे घर घाले ।
तेरे निवाजे गरीबनिवाज बिराजत बैरिनके उर साले ॥
संकट मोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरीके से जाले ।
बूढ़ भये बलि मेरेहि बार कि हारि परे बहुतै नत पाले ॥ १७॥

सिंधु तरे बड़े बीर दले खल जारे हैं लंकसे बंक मवा से ।
तैं रन केहरि केहरिके बिदले अरि कुंजर छैल छवा से ॥
तोसों समत्थ सुसाहेब सेइ सहै तुलसी दुख दोष दवा से ।
बानर बाज बढ़े खल खेचर लीजत क्यों न लपटि लवा से ॥ १८॥

घनाक्षरी

जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि बोल न बिसारिये ।
सेवा जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये ॥
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये ।
साहसी समीरके दुलारे रघुबीरजूके, [बाँह] पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ॥ २०॥

बालक बिलोकि बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबंधु दया किन्हीं निरुपाधि न्यारिये ।
रावरो भरोसो तुलसीके रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये ॥
बड़ो बिकराल कलि काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलीको निहारि सो निवारिये ।
केसरीकिसोर रनरोर बरजोर बीर, [बाहु]पीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ॥ २१ ॥

उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरीकुमार बल आपनो सँभारिये ।
राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरेको तकिया तिहारिये ॥
साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर बाँधी मारिये ।
पोखरी बिसाल [बाँहू] बलि बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरिकै बदन बिदारिये ॥ २२॥

रोमको सनेह राम साहस लखन सिय, राम की भगति सोच संकट निवारिये ।
मुद मरकट रोग बारिनिधि हेरि हारे, जीव जामवंतको भरोसो तेरो भारिये ॥
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम पब्बयतें, सुथल सुबेल भालु बैठिकै बिचारिये ।
महाबीर बाँकुरे बराकी [बाँह]पीर क्यों न, लंकनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये ॥ २३ ॥

लोक परलोकहूँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहुँ निहारिये ।
कर्म काल लोकपाल अग जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ॥
खास दास रावरो निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये ।
बात तरुमूल [बाँहू]सूल कपिकच्छु बेलि, उपजी सकेलि कपीकेलि ही उखारिये ॥ २४॥

करम कराल कंस भूमिपालके भरोसे, बकी बकभगिनी काहुतें कहा डरैगी ।
बड़ी बिकराल बालघातिनी न जात कहि, बाँहुबल बालक छबीले छोटे छरैगी ॥
आई है बनाइ बेष आप हि बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी ।
पूतना पिसाचिनि ज्यौं कपिकान्ह तुलसीकी, [बाँह]पीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ॥ २५ ॥

भालकी कि कालकी कि रोषकी’ त्रिदोषकि है, बेदन बिषम पाप ताप छलछाँहकी ।
करमन कुटकी कि जंत्रमन्त्र बूटकी, पराहि जाहि पापिनी मलीन मनमाँहकी ॥
पैहहि सजाय नत कहत बजाय तोहि, बावरी न होहि बानि जानि कपिनाँहकी ।
आन हनुमानकी दोहाई बलवान की, सपथ महाबीरकी जो रहै पीर [बाँह] की ॥ २६ ॥

सिंहिका सँहारी बल, सुरसा सुधारी छल, लंकनी पछारि मारि बाटिका उजारि है ।
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ॥
तोरि जमकातरि मदोदरी कढोरि आनी, रावन की रानी मेघनाथ महँतारी है ।
भीर [बाँह]पीर की निपट राखी महाबीर, कौनके सकोच [तुलसी]के सोच भारी है ॥ २७॥

तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीरसुधि सक्र रबि राहुकी ।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहु की ॥
साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपीनाथहीके चोटी चोर साहुकी ।
आलस अनख परिहासकै सिखावन है, एते दिन रही पीर [तुलसी]के [बाहु]की ॥ २८॥

टुकनिको घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है ।
किन्ही है सँभार सार अंजनीकुमार बीर, आपनो बिसारिहैं न मेरेहू भरोसो है ॥
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है ।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरीको मरन खेल बालकनिको सो है ॥ २९ ॥

आपनो ही पापतें त्रितापतें कि सापतें, बढ़ी है [बाँह]बेदन कही न सहि जाति है ।
औषध अनेक जंत्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म, काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है ।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत, ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराती है ॥ ३०॥

दूत रामरायको सपूत पूत बायको, समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको ।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिकके घायको ॥
एते बड़े साहेब समर्थको निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन कायको ।
थोरी [बाँह]पीरकी बड़ी गलानि [तुलसी]को, कौन पाप कोप लोप प्रगट प्रभायको ॥ ३१ ॥

देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं ।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, रामदूतकी रजाइ माथे मानि लेत हैं ॥
घोर जंत्र मंत्र कूट कपट कुरोग जोग, हनूमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं ।
क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीजे तुलसीको, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत है ॥ ३२ ॥

तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों, तेरे घाले जातुधान भये घर घर के ।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबरके ॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके ।
[तुलसी]के माथेपर हाथ फेरो किसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके ॥ ३३ ॥

पालो तेरे टूकको परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये ।
भोरानाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष, पोषी तोषि थापि आपनो न अवडेरिये ॥
अंबु तू हौं अंबुचर अंब तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये ।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, [तुलसी] की [बाँह] पर लामीलूम फेरिये ॥ ३४ ॥

घेरि लियो रोगनि कुजोगनि कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है ।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम मूल मलिनाई है ॥
करुनानिधान हनुमान महाबलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजें तैं उड़ाई है ।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरीकिसोर राखें बीर बरिआई है ॥ ३५ ॥

सवैया

रामगुलाम तुही हनुमान, गोसाँइ सुसाँइ सदा अनुकूलो ।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू, पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ॥
बाँहकी बेदन बाँहपगार, पुकारत आरत आनँद भूलो ।
श्रीरघुबीर निवारिये पीर, रहौं दरबार परो लटि लूलो ॥ ३६॥

घनाक्षरी

कालकी करालता करम कठिनाई कीधौं, पापके प्रभावकी सुभाय बाय बावरे ।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीरडावरे ॥
लायो तरु [तुलसी] तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहूँ तावरे ।
भूतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान, जानियत सबहीकी रीति राम रावरे ॥ ३७ ॥

पाँयपीर पेटपीर बाँहपीर मुँहपीर, जरजर सकल सरीर पीरमई है ।
देव भूत पितर करम खल काल गृह, मोहिपर दवरि दमानक सी दई है ॥
हौं तो बिन मोलके बिकानो बलि बारेहि तें, ओट रामनामकी ललाट लिखि लई है ।
कुंभजके किंकर बिकल बूड़े गोखुरनि, हाय रामराय ऐसी हाल कहूँ भई है ॥ ३८ ॥

बाहुक सुबाहु नीच लीचर मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं ।
रामनाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ॥
सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं ।
तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारी भट,बेधे बरगदसे बनाइ बानवान हैं ॥ ३९ ॥

बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, रामनाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं ।
परयो लोकरीतिमें पुनीत प्रीति रामराय, मोहबस बैठो तोरी तरकितराक हौं ॥
खोटे खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनीकुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं ।
[तुलसी] गोसाइँ भयो भोंडे दिन भूलि गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ॥ ४० ॥

असन बसन हीन बिषम बिषाद लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को ।
[तुलसी] अनाथसो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सीलसिंधु आपनो सुभायको ॥
नीच यहि बीच पति पाइ भरूहाइगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन कायको ।
तातें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटी निकसत लोन रामरायको ॥ ४१ ॥

जिओं जग जानकीजीवनको कहाइ जन, मरिबेको बारानसी बारि सुरसरिको ।
[तुलसी]के दुहुँ हाथ मोदक है ऐसे ठाउँ, जाके जिय मुये सोच करिहैं न लरिको ॥
मोको झूठो साँचो लोग रामको कहत सब, मेरे मन मान है न हरको न हरको ।
भारी पीर दुसह सरीरतें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करिको ॥ ४२ ॥

सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेसको महेस मानो गुरुकै ।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुरकै ॥
ब्याधि भूतजनित उपाधि काहू खलकी, समाधि कीजे तुलसीको जानि जन फुरकै ।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोगीसिंधु क्यों न डारियत गाय खुरकै ॥ ४३॥

कहों हनुमानसों सुजान रामरायसों, कृपानिधान संकरसों सावधान सुनिये ।
हरष विषाद राग रोष गुन दोषमई, बिरची बिरंचि सब देखियत दुनिये ॥
माया जीव कालके करमके सुभायके, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये ।
तुम्हतें कहा न होय हाहा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौन ही बयो सो जानि लुनिये ॥ ४४॥

Hanuman Bahuk ends here at || 44 ||.

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 Here are few things that previous generations used to do on Diwali. Mantra to remove poverty: This mantra is often chanted to beat away the poverty from the home. This is ritualistic where people imagine “poverty” and other kinds of negativity are going away and home is getting purer and cleaner to attract goddess Lakshmi. काने भेड़े दुखदायी दरिद्र तू मेरे घर से जा अब भाग ॥ देवी भगवती लक्ष्मी आई, तज घर मेरा और जा भाग ॥ डंडा बजाऊ मार लगाऊ नहीं तो जा अब भाग ॥ लक्ष्मी जी का वास हो गया मेरे यहाँ, तेरा नहीं निस्तार ॥ Mantra to attract Lakshmi:

Organising the mind and creating something wonderful

 I work from home as many people do. When I get up in the morning, I often get confused either to take a bath, a walk, watch tv — or do my work. And when I open my PC, still there are so many things: backing up files, mainly databases, managing usernames and passwords, reading emails, and there is always a chance to get lost in social media, facebook, twitter and other things. After an hour or two, I find that I’ve messed up everything. But this must not go everyday….. So I need to use a willpower? Kind of motivation, inspiration that I need to do only prioritise work: what is important, first; second important, second; third important, third; and so on. But in my case, will power often fails — it makes me inflexible, arrogant, dry of ideas and playfulness. And I find myself just doing nothing, it's just willpower and determination that break my back.