This bigger Bajrang Baan is with 58 Chopai, it is not so popular but you may find this through some Guru Parampara or from some devotee of Lord Hanuman. You may use any Bajrang Baan shorter one or this one, each has impact.
।। दोहा ।।
।। निश्चय प्रेम-प्रतीति ते, विनय करै सह मान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ।।
।। चौपाई ।।
जय हनुमन्त! सन्त-हितकारी। सुन लीजे प्रभु! विनय हमारी ।। १
जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा-सुख दीजै ॥२
जैसे कूदि सिन्धु के पारा। सुरसा वदन पैठि विस्तारा ॥३
आगे जाय लङ्किनी रोका। मारेहु लात-गई सुर-लोका ॥४
जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा॥५
बाग उजारि सिन्धु मँह बोरा । अति आतुर यम कातर तोरा ।।६
अक्षय अखय-कुमार मारि संहारा। लूम लपेट लङ्क को जारा।॥७
लाह समान लङ्क जरि गई। जै-जै ध्वनि सुर-पुर नभ भई॥८
जय-जय लखन-प्राण के दाता ! आतुर है दुख करहु निपाता ॥१०
जै गिर-धर ! जै-जै सुख-सागर। सुर-समूह समरथ भट-नागर!॥११
ॐ हनु-हनु-हनु हनुमन्त हठीले! बैरिही मारु बज्र-सम मीले ॥१२
गदा-बज्र लै बैरिहि मारौ । महा-राज! निज दास उबारौ ॥१३
ॐकार हुङ्कार करि धावौ । वज्र-गदा हनु! विलम्ब न लावौ ॥१४
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीशा ! ॐ हुँ हुँ हुँ हनु ! अरि-उर सीसा ॥१५
सत्य होहु हरि सपथ पाय कै। राम-दूत! धरु मारु धाय कै॥१६
जै हनुमन्त! अनन्त अगाधा! दुख पावत जन केहि अपराधा।।१७
पूजा-जप-तप-नेम-अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ॥१८
वन-उपवन-जल-थल-गृह माहीं। तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥१९
पाँव परौं कर जोरि मनावौं। अपने काज लागि गुण गावौं ।॥२०
जै अञ्जनी-कुमार! बल-वन्ता! शङ्कर-सुवन वीर हनुमन्ता ! ॥२१
वदन कराल! काल-कुल-घातक! राम-सहाय! सदा प्रति-पालक !॥२२
भूत-प्रेत-पिशाच-निशाचर। अगिन-बेताल-काल-मारी -मर॥२३
इन्हें मारु, तोहिं शपथ राम की। राखु नाथ! मर्याद नाम की॥२४
जनक-सुता-हरि-दास कहावौ । ताकी सपथ विलम्ब न लावौ ।।२५
जै-जै-जै ध्वनि होत अकाशा। सुमिरत होत दुसह दुख नाशा ।।२६
चरण-शरण कर जोरि मनावौं। एहि अवसर अब केहि गोहरावौं? ॥२७
उठ उठ चल तोहि राम-दुहाई। पाँय परौं कर जोरि मनाई ॥२८
ॐ चं-चं-चं-चं चपल चलन्ता। ॐ हनु-हनु-हनु-हनु-हनु हनुमन्ता ॥२९
ॐ हं-हं हाँक देत कपि चञ्चल । ॐ सं-सं सहमि पराने खल-दल॥३०
अपने जन कौं तुरत उबारौ । सुमिरत होय आनन्द हमारौ ।। ३१
ताते विनती करौं पुकारी। हरहु सकल दुःख विपति हमारी ॥३२
ऐसौ बल-प्रभाव प्रभु! तोरा । कस न हरहु दुःख-सङ्कट मोरा? ।।३३
हे बजरङ्ग! बाण-सम धावौ । मेटि सकल दुःख दरस दिखावौ ॥३४
हे कपि-राज! काज कब ऐहौ? अवसर चूकि अन्त पछतैहौ ।। ३५
जन की लाज जात एहि बारा। धावहु हे कपि! पवन-कुमारा ! ॥३६
जयति-जयति जै-जै हनुमाना! जयति जयति गुण-ज्ञान-निधाना! ।॥३७
जयति-जयति जै-जै कपि-राई! जयति जयति जै जै सुख-दाई ॥३८
जयति-जयति, जै राम-पियारे ! जयति जयति जै, सिया-दुलारे ॥३९
जयति-जयति मुद-मङ्गल-दाता ! जयति जयति त्रिभुवन-विख्याता ! ॥४०
एहि प्रकार गावत गुण शेषा । पावत पार नहीं लव-लेसा ॥४१
राम रूप सर्वत्र समाना। देखत रहत सदा हर्षाना ।।४२
विधि-सारदा-सहित दिन-राती । गावत कपि के गुन बहु भाँती ॥४३
तुम सम नहीं जगत बलवाना। करि विचार देखउँ विधि नाना ।।४४
यह जिय जानि शरण तव आई। ताते विनय करौं चित लाई।॥४५
सुनि कपि! आरत-वचन हमारे। मेट्हु सकल दुःख - भ्रम भारे।।४६
एहि प्रकार विनती कपि केरी। जो जन करै, लहै सुख-ढेरी ॥४७
याके पढ़त वीर हनुमाना। धावत बाण तुल्य बलवाना ।।४८
मेटत आय दुःख छिन माहीं। दै दर्शन रघुपति ढिंग जाहीं ॥४९
पाठ करे 'बजरङ्ग-बाण' की। हनुमत रक्षा करें प्राण की ॥५०
डीठ-मूठ-टोनादिक नासै। पर-कृत यन्त्र - मन्त्र नहिं त्रासै॥५१
भैरवादि सुर करें मिताई। आयसु मानि करें सेवकाई ॥५२
प्रण करि पाठ करै मन लाई। अल्प-मृत्यु ग्रह-दोष नशाई ॥५३
आवृत ग्यारह प्रति-दिन जापै। ताकी छाँह काल नहिं व्यापै ।॥५४
दै गूगुल की धूप हमेशा । करै पाठ तन मिटै कलेशा॥५५
यह 'बजरङ्ग-बाण' जेहि मारै। ताहि कहौ, फिर कौन उबारै?।॥५६
शत्रु-समूह मिटै सब आपै। देखत ताहि सुरासुर काँपै ॥५७
तेज प्रताप - बुद्धि अधिकाई। रहै सदा कपि-राज सहाई ॥५८
।।दोहा।।
।। प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै, सदा धेरै उर ध्यान। तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करें हनुमान ।।
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